उपलब्धियां

पिछले 5-6 वर्षों के दौरान, संगठन ने देश के वनीय परिदृश्य में हरित आवरण को बढ़ाने तथा साथ-साथ कृषिवानिकी के तहत ; काष्ठ उत्पादकता में वृद्धि; संरक्षण तकनीकों के माध्यम से काष्ठ के स्थायित्व को बढ़ाने; सम्मिश्र काष्ठ विकसित करने; स्थानीय आजीविका को बढ़ाने; आदि के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण / समीक्षात्मक योगदान दिया है। इनमें से कुछ योगदानों के मुख्य अंश नीचे दिए गए हैं:

 

1- हरित आवरण और काष्ठ उत्पादकता में वृद्धि

 

i - यूकेलिप्टस और पॉपलर आधारित कृषि प्रणाली: भा.वा.अ.शि.प. ने 3000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में यूकेलिप्टस और पॉपलर आधारित कृषिवानिकी प्रणाली को लोकप्रिय बनाया है। बिहार में कृषि संबंधी पद्धतियों में पथप्रदर्शी आधार पर पॉपलर को सफलतापूर्वक शुरू किया और 2006 से 2012 के बीच वैशाली जिले में किसानों को 66.70 लाख पौधों की आपूर्ति की गई।

ii - कैजुरिना प्रजनन कार्यक्रम: 20-वर्षीय कैजुरिना प्रजनन कार्यक्रम के परिणामस्वरूप दूसरी पीढ़ी के नवांकुर बीज बागान और कृंतकीय बीज बागान की स्थापना हुई जिसमें कैजुरिना इक्विसेटीफोलिया के 7 उच्च उपज वाले कृंतक और कैसुअरीना झुंघूहिनियाना के 7 उच्च उपज वाले कृंतक शामिल हैं। कैसुरियाना झुंघूहिनियाना के कृंतक, विशेष रूप से  'CJ9,' बहुत तेजी से बढ़ने वाले साबित हुए हैं और बहुत अधिक मांग वाले हैं। स्थानीय बीज के 5 वर्ष की आवर्तन उम्र को कम कर उन्नत बीज के साथ 3 साल किया गया। 9,000 से अधिक हेक्टेयर में वृक्षारोपण की स्थापना में बीज और कृंतक सामग्री के रूप में उन्नत जननद्रव्य का उपयोग किया। पहली पीढ़ी के बीजोद्यान से उगाए गए वृक्षारोपण में 13% से 28% का उत्पादकता लाभ दर्ज किया गया है। नए क्षेत्रों में उन्नत बीजों वाले कैसुरीना वृक्षारोपण से अनुमानित रूप से 9.5 करोड़ रु के मूल्य के तुल्य जैविक नाइट्रोजन उत्पादन की वृद्धि हुई है।

iii- पोपलर कृंतकों का उन्नतिकरण: पोपलर वृक्षारोपण में 2000 में बड़े पैमाने पर कई बेहतर और रोग प्रतिरोधक कृंतक पेश किए जैसे  S7C8, 82-35-4,  113324 और G48 कृंतक के प्रदर्शन का पुनर्मूल्यांकन किया। अकेले G48 कृंतक की उत्तर-पश्चिम भारत में लगाए जा रहे कुल पोपलर वृक्षारोपण में 50% से अधिक की हिस्सेदारी है। ये उन्नत कृंतक पत्ता झुलसा रोग से मुक्त हैं और पूर्व के कृंतकों में अभिलेखित उत्पादन के मुकाबले 15-20 प्रतिशत अधिक उत्पादन देते हैं।

iv – उच्च उत्पादकता वाले यूकेलिप्टस कृंतकों का विकास: यूकेलिप्टस के कई उच्च उत्पादकता और रोग प्रतिरोधक संकर कृंतकों का विकास किया। 2011 से 2014 के दौरान यूकेलिप्टस कमल्डुलेन्सिस के 11 कृंतकों का विकास और निर्मुक्त किया। इन कृंतकों नें उंचाई में 17 प्रतिशत तथा डीबीएच में 14 प्रतिशत की आनुवंशिक लाभ का प्रदर्शन किया है।

v – रोग प्रतिरोधक शीशम कृंतक: शीशम का एक रोग प्रतिरोधक कृंतक DS-4 निर्मुक्त किया गया।

vi – मीलिया (मीलिया डूबिया) उन्नतिकरण कार्यक्रम (2008-2021): लंबे और सीधे तनों तथा औसत उपज वाली 10 कृषिजोपजातियों का चिन्हीकरण और परीक्षण किया जो कि एक गैर-चयनित जननद्रव्य की औसत उपज के दुगुने से अधिक है।

 

2- विकसित प्रौद्योगिकियां और पेटेंट

 

ग्रामीण और जनजातीय आजीविका के समर्थन में विकसित प्रौद्योगिकियाँ

i - स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जैव संसाधनों (पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और आयातित आसंजक सामग्री की लागत का लगभग 60% उत्पादित) से अगरबत्ती के लिए एक जैव-बहुलक आधारित आसंजक सामग्री (जिगत) विकसित किया गया। हर साल उद्योगों द्वारा लगभग 36,000 मीट्रिक टन आसंजक सामग्री (जिगत) जिसकी कीमत रु 432 करोड़ है (रु 120 प्रति किग्रा) उपयोग किया जा रहा है।

ii - समृद्धि का विकास - रेशमकीट पालन से गुणात्मक लाभ कोकून कताई अवधि को घटाकर सिर्फ 15-18 घंटे तक कर देता है।

iii – फ्लेमिंजिया सेमियाअलाटा पर लाख की खेती तकनीकों का मानकीकरण, जिसके परिणामस्वरूप एक सदाबहार स्थानीय शाक जो कि प्रति एकड़ ज्यादा पैदावार तथा करीब 80000 रूपये के औसत वार्षिक लाभ के रूप में परिलक्षित हो रही है।

iv - बाँस के गुल्मों के उपचार के लिए एक सरल उपकरण विकसित किया और एक पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित उपचार घटक भी विकसित किया।

v - ट्री रिच बायो - बूस्टर, वर्मिको-आईपीएम, और एन-फिक्सर (फ्रैंकिया के साथ) ब्रांड नाम के तहत जैव विकास वृद्धिकारक विकसित किया गया। फ्रैंकिया के साथ एन-फिक्सर विशेष रूप से सफल कैजुरिना नर्सरी और वृक्षारोपण को बढ़ाने में बहुत उपयोगी है।

vi - क्रॉल क्लीन का विकास - 5 पौधों की प्रजातियों (मीलिया डूबिया, पोंगैमिया पिन्नाटा, एरिस्टोलोसिया ब्रेक्टिएटा, अधतोड़ा वेसिका और वाइटेक्स नेगुंडो) के पर्ण चूर्ण से विकसित एक हरा कीटनाशक - टीक जैसे वानिकी वृक्ष प्रजातियों पर पपाया मीली बग को नियंत्रित करने के लिए। इसके अलावा करंजा (पोंगैमिया पिन्नाटा) और रीठा (सैपइंडस मुकोरोसी) के गैर-खाद्य तेल बीजों से तना वेधकों के प्रबंधन के लिए पृष्ठसक्रियकारकों पर आधारित एक कीटनाशक सूत्रीकरण विकसित किया गया है जिसमें न तो कोई इमल्सीकारक है और न ही कोई परिरक्षक।

 

पेटेंट कराई गई प्रौद्योगिकियां: हाल के वर्षों में अनुमत महत्वपूर्ण पेटेंट/प्रक्रियाधीन पेटेंट

i - हरे बांस के उपचार के लिए एक उपकरण (अनुमत)

ii - एक वैक्यूम आपाक (प्रक्रियाधीन)

iii - पर्यावरण अनुकूल, किफायती और गैर संकटजनक एक काष्ठ परिरक्षक (ZiBOC) (अनुमत)

iv - शहतूत के रेशमकीट के समकालिक परिपक्वता के लिए एमरनथैसिया के खरपतवारों से फाइटोकेडिस्टेरॉयड प्राप्त करने की एक प्रक्रिया '(प्रक्रियाधीन)

v - इयूगाललर- यूकेलिप्टस अर्बुद ततैया, लेप्टोसायबे इनवासा को पकड़ने के लिए पादप वाष्पशील (प्रक्रियाधीन)

vi - साबुन की संरचना (प्रक्रियाधीन)

vii - एक आसंजक संरचना जिसमें वसा रहित शोरिया रोबस्टा (साल) बीज  शामिल है। (प्रक्रियाधीन)

viii - अखाद्य तेल के बीजों से पृष्ठसक्रियकारकों पर आधारित एक कीटनाशक निर्माण (प्रक्रियाधीन)

 

3- अल्पकालिक व्यावसायिक समनुदेशन और सेवाएँ

 

i - खनन के साथ संरक्षण को संतुलित करने के लिए झारखंड में सारंडा वन की वहन क्षमता का अध्ययन।(प.व.ज.प. मं के लिए)

ii - पांच तटीय राज्यों में वानिकी हस्तक्षेप पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के लिए)

iii - देश में औषधीय पादपों का उनकी वाणिज्यिक मांग का आकलन करने के लिए सर्वेक्षण-सह-अध्ययन  (राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के लिए).

iv - कर्नाटक में संचालित लौह अयस्क खदानों के संबंध में खदान पुनर्प्राप्ति और पुनरुद्धार योजनाएं

v - पांच काष्ठ वृक्ष प्रजातियों यूकेलिप्टस, पोपलर, शीशम, मीलिया और आम के उष्मीय संशोधन के लिए विकसित प्रोटोकॉल (पंजाब वन विभाग के लिए)

vi - देश भर के कोयला खानों का पर्यावरण लेखा परीक्षा (कोल इंडिया लिमिटेड के लिए)

vii - हिमाचल प्रदेश में देवदार और विलो, उत्तरी भारतीय राज्यों में शीशम, हरियाणा में चीड़ पाइन, राजस्थान में एनोगेइसस  के नाशीकीटों/ रोगजनकों की पहचान करना, औषधीय पौधों का प्रचार, बांस के प्रचार और इसके प्रबंधन, मिट्टी संरक्षण उपायों, विदेशी खरपतवारों के प्रबंधन, आदि।

viii - पर्यावरण प्रबंधन में 47 प्रमुख परामर्श सेवाएं प्रदान की गई हैं जिनमें ईआईए अध्ययन, वहन क्षमता अध्ययन, पर्यावरण मंजूरी की ग्रीन परिस्थितियों की निगरानी, खानों के लिए पुनर्प्राप्ति और पुनरुद्धार योजनाओं की तैयारी, जैव विविधता अध्ययन आदि शामिल हैं।

 

4- वानिकी विस्तार

 

i- वन विज्ञान केंद्रों की स्थापना (वीवीकेएस)- प्रयोगकर्ता समूहों तक प्रसार प्रौद्योगिकियों के उद्देश्य के साथ 29 वन विज्ञान केंद्रों की स्थापना।

ii – प्रदर्शन ग्राम: हितधारकों को संवेदनशील बनाने के लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा iii – वीवीके के साथ केवीके की नेटवर्किंग: आवश्यकता औऱ संसाधनों के बीच अंतराल को भरने के लिए, वीवीके औऱ केवीके के मध्य नेटवर्किंग शुरू की गयी है।

iv – वृक्ष उत्पादकों का मेला (टीजीएम): वन आनुवंशिकी एवं वृक्ष प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर ने 2009 से वृक्ष उत्पादकों का मेला का आयोजन करके इस संबंध में एक पहल की थी। यह काष्ठ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, वर्षा वन अनुसंधान संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान जैसे अन्य सभी संस्थानों में एक नियमित कार्यक्रम बन गया है।